राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष पर उठाए सवाल
लोकसभा के एक गरमा-गरम सत्र में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति जैस्चर को लेकर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि जब उन्होंने बिरला से हाथ मिलाया तो वे सीधे खड़े रहे, लेकिन जब मोदी ने हाथ मिलाया, तो बिरला झुक गए। राहुल गांधी ने इस बात पर जोर दिया कि अध्यक्ष की निष्पक्षता भारतीय लोकतंत्र की मीनार होती है और उनके शब्द भारतीय लोकतंत्र को परिभाषित करते हैं।
अमित शाह का तीखा जवाब
गृह मंत्री अमित शाह ने राहुल गांधी के इस बयान का तत्काल उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने सदन की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है और यह अध्यक्ष के प्रति अनादर है। उन्होंने राहुल पर निशाना साधते हुए कहा कि अध्यक्ष का यथायोग्य आदर-सत्कार करना हमारी संस्कृति का हिस्सा है और इसे राजनीति से जोड़ना गलत है।
ओम बिरला ने दी सफाई
ओम बिरला, जिन्होंने खुद को इस विवाद में घसीटा पाया, ने कहा कि उनका झुकाव कोई निजी प्रशंसा नहीं था, बल्कि यह हमारे सांस्कृतिक मान्यताओं और मूल्यों के अनुसार था। उन्होने इस बात पर जोर दिया कि हमारे समाज में बड़े-बुजुर्गों को सम्मान देने के लिए झुकना एक आम बात है।
राहुल गांधी का चर्चित भाषण
इस पूरे विवाद के दौरान, राहुल गांधी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लिया। उन्होंने कहा कि वह ओम बिरला के शब्दों का सम्मान करते हैं, लेकिन लोकसभा में किसी का कद अध्यक्ष से बड़ा नहीं हो सकता। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि गैर-हिंसा और निर्भयता भारतीय राजनीति के मूल स्तंभ हैं, और विभिन्न धर्मों से उदाहरण लेते हुए इसी की आवश्यकता की बात की।
उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), और नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे धर्म के नाम पर नफरत और हिंसा फैलाते हैं। राहुल ने कहा कि उनके विचार सीधे सत्तारूढ़ दल और उसके प्रमुख नेताओं पर हैं, न कि सामान्य हिंदू समुदाय पर।
प्रधानमंत्री और बीजेपी का प्रतिक्रिया
इस बयान के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के अन्य सदस्यों ने राहुल गांधी के इस बयान का तेजी से उत्तर दिया। उन्होंने इसे न केवल हिंदू समाज का अपमान माना, बल्कि इसे भारतीय राजनीति की तह तक ले जाने का प्रयास भी बताया। उग्र बहस और तकरार के बीच, राहुल गांधी ने अपनी बात पर अडिग रहते हुए जोर दिया कि लोकतंत्र में अध्यक्ष की निष्पक्षता सर्वोपरि है।
संसद में इस प्रकार की विचार-विमर्श अक्सर गर्मागर्म और कठोर होते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की निष्पक्षता और स्वतंत्रता बनाए रखना हमेशा से एक चुनौती रहा है।