अजय देवगन और तब्बू की फिल्म 'औरों में कहाँ दम था' की समीक्षात्मक समीक्षा
नीरज पांडे द्वारा निर्देशित फिल्म 'औरों में कहाँ दम था' का समीक्षात्मक विश्लेषण इस बात को उजागर करता है कि यह फिल्म अपनी विशाल संभावनाओं के बावजूद अपने लक्ष्यों को पूरा करने में असफल रही है। अजय देवगन और तब्बू जैसे अनुभवी कलाकारों की उपस्थिति वाली यह फिल्म एक रोमांटिक ड्रामा है, जो 23 सालों के कालखंड में फैली हुई है।
फिल्म की कहानी और निर्देशन
फिल्म की कहानी कृष्णा (अजय देवगन) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक दोहरे हत्या के आरोप में जेल की सजा काट रहे हैं और जेल से बाहर नहीं आना चाहते। शंतनु माहेश्वरी ने कृष्णा के युवा रूप का किरदार निभाया है, जो वसुधा (साईं मंजरेकर) से प्रेम करता है। कहानी में उनके प्रेम और उनके अलगाव के पीछे की घटनाओं को दिखाया गया है। फिल्म का निर्देशन नीरज पांडे ने किया है, जिनकी पिछली फिल्में चर्चित रही हैं। लेकिन इस बार वे अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे हैं।
फिल्म की गति और नरेटिव
फिल्म के धीमे गति को लेकर काफी आलोचना की जा रही है। पहले भाग को बेहद धीमा और डेली सोप ओपेरा के समान बताया जा रहा है। फिल्म में कई बार कहानी इतनी धीमी हो जाती है कि दर्शकों का ध्यान बांधे रखना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, फिल्म में कई अनावश्यक गानों को शामिल किया गया है, जो कहानी को खींचते हैं और दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेते हैं।
अभिनय और प्रदर्शन
अभिनय के मामले में अजय देवगन और तब्बू ने अपनी सामान्य स्तर की प्रदर्शन किया है। उनका अभिनय उनके पिछले कामों जैसा ही है, जिसमें कोई नवाचार देखने को नहीं मिला है। दूसरी ओर, शंतनु माहेश्वरी और साईं मंजरेकर ने अपने किरदारों में जीवंतता लाई है और उनके अभिनय में संभावनाएं दिखाई देती हैं।
संगीत और बैकग्राउंड स्कोर
फिल्म का संगीत एमएम कीरवानी द्वारा रचित है, लेकिन निराशाजनक है। फिल्म के गाने यादगार नहीं हैं और वे कहानी की प्रगति में बाधा डालते हैं। बैकग्राउंड स्कोर भी कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ता है।
फिल्म की लंबाई और पुनरावृत्तात्मक कहानी
फिल्म की लंबाई इसके सबसे बड़े दोषों में से एक है। कहानी को अनावश्यक रूप से खींचा गया है, जिससे दर्शकों की रुचि धीरे-धीरे कम हो जाती है। पुनरावृत्तात्मक कहानी और संवाद कहीं-कहीं अत्यधिक उबाऊ हो जाते हैं।
निष्कर्ष
'औरों में कहाँ दम था' फिल्म में एक अच्छी कहानी और बेहतरीन कलाकारों की उपस्थिति होने के बावजूद, अपनी लंबाई और धीमी गति के कारण असफल रही है। पात्रों के बीच के संवाद और घटनाओं की पुनरावृत्ति ने इसे निराशाजनक बना दिया है। कुल मिलाकर, यह फिल्म अपने उद्देश्यों को पूरे करने में असफल रही और एक लंबी और बोझिल ड्रामा के रूप में उभरकर सामने आई है।