छठ महापर्व का खरना: कल सूर्यास्त के बाद शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत

अक्तू॰ 28, 2025
raja emani
छठ महापर्व का खरना: कल सूर्यास्त के बाद शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत

कल सूर्यास्त के बाद शुरू होने वाला खरना, छठ महापर्व का दूसरा और सबसे भावुक दिन है — जहाँ भक्तों का शरीर और मन एक अद्वितीय शुद्धता की ओर बढ़ता है। खरना 2025 रविवार, 26 अक्टूबर, 2025 को मनाया जाएगा, जबकि बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लाखों घरों में घरेलू पूजा का तैयारी शुरू हो चुकी है। ये दिन केवल भोजन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक शुद्धिकरण का प्रतीक है। पी.के. युग, ज्योतिषी, ने स्पष्ट किया कि ‘खरना का प्रसाद सूर्यास्त के बाद ही खाया जाना चाहिए’ — इस एक बिंदु पर ही पूरे व्रत की शुद्धता निर्भर करती है।

खरना क्यों है इतना विशेष?

इस दिन को सिर्फ भोजन का दिन नहीं कहा जा सकता। ये वह दिन है जब भक्त अपने मन को शुद्ध करने का वादा करते हैं। जागरण.कॉम के अनुसार, ‘खरना छठ पूजा का सबसे विशेष दिन है, क्योंकि इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है।’ यहाँ कोई पानी नहीं, कोई दाल-चावल नहीं — बस एक अटूट विश्वास। इस व्रत का उद्देश्य केवल शरीर को निर्जल रखना नहीं, बल्कि मन को शांत, विचारों को शुद्ध और इच्छाओं को निस्वार्थ बनाना है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त अपने अंदर के अहंकार को त्याग देता है, वही अगले दिनों के कठोर व्रत को आसानी से सहन कर पाता है।

प्रसाद का रहस्य: गुड़ की खीर और गेहूँ की रोटी

खरना का प्रसाद किसी साधारण भोजन जैसा नहीं है। इसमें शामिल हैं — गुड़ की खीर (चावल, दूध और गुड़ से बनी), और गेहूँ की रोटी या पुरी। ये सब कुछ मिट्टी के भट्टे पर, मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है। नवभारत टाइम्स लिखता है, ‘महिलाएँ इस दिन सुबह से ही धीरे-धीरे, शांति से, खाना बनाती हैं — जैसे वो देवी को अपनी आँखों की बूँदें चढ़ा रही हों।’ यह प्रसाद पहले सूर्य देव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है, फिर ही परिवार के सदस्य उसे खाते हैं। इसे घर के बाहर भी बाँटा जाता है — लाइव हिंदुस्तान के अनुसार, ‘प्रसाद बाँटना भाग्यशाली होता है, यह एक आध्यात्मिक दान है।’

पूजा की विधि: मंत्र, स्नान और सूर्य की ओर दृष्टि

खरना के बाद शाम को भक्त नहीं बल्कि आत्मा का स्नान करते हैं। नदियों, तालाबों या घर के तालाब में नहाने के बाद, वे सूर्य देव के लिए विशेष मंत्र पढ़ते हैं। एक मंत्र है: ‘Raktaambujasanmasheshtagunaikasindhum Bhaanum samastajagatamadhipam bhajami’ — जिसका अर्थ है, ‘मैं लाल कमल जैसे चक्रव्यूह से घिरे, सभी जगत के स्वामी सूर्य की पूजा करता हूँ।’ दूसरा मंत्र है: ‘Ehi Surya Sahasraamso Tejoraashe Jagatpate’ — ‘हे सूर्य, हजारों किरणों वाले, जगत के स्वामी, कृपा करके मुझे अपनी शरण में ले लो।’ ये मंत्र न सिर्फ धार्मिक हैं, बल्कि एक आंतरिक आह्वान हैं — जो भक्त को अपने अंदर के अंधेरे को दूर करने के लिए प्रेरित करते हैं।

महिलाओं का व्रत: बच्चों के लिए जीवन का दान

खरना और उसके बाद का निर्जला व्रत ज्यादातर महिलाओं द्वारा अपनाया जाता है। नवभारत टाइम्स के अनुसार, ‘महिलाएँ इस व्रत को अपने बच्चों की लंबी आयु और समृद्धि के लिए करती हैं।’ यह कोई रूढ़ि नहीं, बल्कि एक गहरा भावनात्मक संकल्प है। एक बिहार की महिला ने बताया, ‘मैं नहीं खाती, न पीती, लेकिन जब मैं अपने बेटे के लिए धूप में खड़ी होती हूँ, तो मुझे लगता है कि सूर्य देव मेरी आहट सुन रहे हैं।’ ये व्रत न सिर्फ धार्मिक है, बल्कि मातृत्व की शक्ति का एक अद्वितीय प्रकटीकरण भी है।

चार दिनों का सफर: नहाय-खाय से उषा अर्घ्य तक

चार दिनों का सफर: नहाय-खाय से उषा अर्घ्य तक

छठ महापर्व चार दिनों का एक धार्मिक सफर है। शनिवार, 25 अक्टूबर को नहाय-खाय — पहला दिन — था, जब भक्तों ने नहाने के बाद भोजन किया। अब रविवार को खरना — दूसरा दिन। अगले दिन, सांध्य अर्घ्य (27 अक्टूबर), सूर्यास्त के समय नदी किनारे अर्घ्य दिया जाएगा। और अंतिम दिन, उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर), सुबह की पहली किरण में सूर्य को अर्घ्य चढ़ाकर व्रत समाप्त होगा। इस चक्र का इतिहास 13वीं शताब्दी तक जाता है, जैसा कि लाइव हिंदुस्तान ने रिपोर्ट किया है।

समाज का एक अद्वितीय बंधन

छठ का असली जादू यहाँ नहीं है कि कौन क्या खा रहा है, बल्कि यहाँ है कि कौन किसके लिए बैठा है। गाँव की एक महिला दूसरी के घर में खीर बनाने में मदद करती है। शहर का एक युवा अपनी बुजुर्ग दादी के साथ नदी किनारे जाता है। यह एक अनलाइन नहीं, बल्कि एक भौतिक बंधन है — जो टेक्नोलॉजी नहीं, भावनाएँ बनाती हैं। यही कारण है कि यह त्योहार भारत के दूर-दूर तक, नेपाल, मॉरीशस, फिजी और संयुक्त राज्य अमेरिका तक पहुँच गया है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

खरना का प्रसाद क्यों मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है?

मिट्टी के बर्तन प्राकृतिक रूप से खाने को शीतल रखते हैं और रासायनिक अपशिष्ट नहीं छोड़ते। यह विश्वास है कि मिट्टी की शुद्धता भोजन की आध्यात्मिक शुद्धता को बढ़ाती है। इस तरह का उपयोग आज भी बिहार और झारखंड के गाँवों में लगभग 95% घरों में किया जाता है।

क्या पुरुष भी खरना का व्रत रख सकते हैं?

हाँ, लेकिन पारंपरिक रूप से यह व्रत महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसे बच्चों के लिए एक मातृक बलिदान माना जाता है। हालाँकि, आधुनिक समय में कई पुरुष भी अपने परिवार के लिए यह व्रत रखते हैं — खासकर जब वे अपने बच्चों के स्वास्थ्य के लिए आशीर्वाद चाहते हैं।

खरना के बाद व्रत क्यों 36 घंटे का होता है?

36 घंटे का समय एक अनुमानित अवधि है जो सूर्यास्त के बाद से अगले दिन की सुबह के सूर्योदय तक चलता है। इस समय में भक्त न तो खाते हैं, न पीते हैं — यह शरीर को शुद्ध करने और मन को ध्यान की ओर ले जाने का एक तरीका है। यह अवधि ज्योतिषीय रूप से भी शुभ मानी जाती है।

क्या छठ पूजा केवल हिंदू ही मनाते हैं?

नहीं, यह त्योहार मुख्य रूप से हिंदू है, लेकिन बिहार और झारखंड में कई अन्य समुदाय भी इसे सम्मान के साथ मनाते हैं। अनेक आदिवासी समुदाय भी सूर्य की पूजा करते हैं, और उनकी कुछ परंपराएँ छठ से मिलती-जुलती हैं। यह एक धार्मिक त्योहार है, लेकिन इसकी भावना सार्वभौमिक है।

20 Comments

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    Saachi Sharma

    अक्तूबर 29, 2025 AT 13:21

    खरना का प्रसाद बिना नमक के होता है तो भी मन भर जाता है।

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    Kaviya A

    अक्तूबर 30, 2025 AT 22:10

    मैंने पिछले साल खरना पर एक दिन भूखा रहा था और फिर भी नहीं टिका... लेकिन अब मैं भी बन रही हूँ जैसे मेरी दादी थीं 😅

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    Vijayan Jacob

    अक्तूबर 31, 2025 AT 04:40

    अरे यार ये सब तो सिर्फ बिहार-झारखंड का नहीं है, ये तो पूरे भारत की आत्मा का हिस्सा है... और फिर भी कुछ लोग इसे 'रीजनल फेस्टिवल' कहते हैं।

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    Nupur Anand

    अक्तूबर 31, 2025 AT 17:18

    ओहो तो अब ये भी आ गया कि सूर्य की पूजा सार्वभौमिक है? ये तो वैदिक ज्ञान का अंतिम रूप है जिसे आधुनिक विज्ञान भी अभी नहीं समझ पाया। आप लोग जो 'मातृत्व की शक्ति' की बात कर रहे हैं, वो तो बस एक विकृति है - असली शक्ति तो वो है जो निर्जला व्रत के बाद भी आँखें खोलकर सूरज को देख पाती हैं।

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    Rupesh Nandha

    नवंबर 2, 2025 AT 10:21

    मुझे लगता है कि खरना का सच यही है कि ये व्रत किसी देवता के लिए नहीं, बल्कि खुद के लिए है। जब आप भूखे रहते हैं, तो आपके विचार शुद्ध हो जाते हैं। आजकल हम सब भोजन के लिए जी रहे हैं, न कि जीने के लिए। ये व्रत हमें वापस लाता है - एक शांत अंतर्दृष्टि की ओर।

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    Yogita Bhat

    नवंबर 3, 2025 AT 12:47

    अरे ये तो मेरी दादी की कहानी है! वो हर साल खरना पर नदी किनारे जाती थीं, बिना बैठे खड़ी रहती थीं... और फिर घर आकर कहतीं - 'बेटा, आज तो सूरज ने मुझे गले लगा लिया।' मैंने कभी नहीं समझा था... अब समझ आ रहा है।

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    Nilisha Shah

    नवंबर 4, 2025 AT 06:25

    मैं देख रही हूँ कि ये व्रत जितना धार्मिक है, उतना ही सामाजिक भी है। जब एक महिला दूसरी के घर खीर बनाने जाती है, तो वो केवल भोजन नहीं बाँट रही होती, बल्कि उसके दर्द को भी साझा कर रही होती है। ये तो असली सामुदायिकता है।

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    Supreet Grover

    नवंबर 5, 2025 AT 18:35

    ये व्रत के अंतर्गत अवधि का ज्योतिषीय अनुकूलन वास्तव में बहुत रोचक है - निर्जलता का 36 घंटे का चक्र एक निर्धारित सौर चक्र के साथ समांतर है, जो अंतर्जातीय जीवन चक्र के साथ अनुकूलित है। यह एक वैदिक समय-संरचना का उदाहरण है।

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    kunal Dutta

    नवंबर 6, 2025 AT 14:41

    अच्छा बात है कि अब पुरुष भी इस व्रत को ले रहे हैं... पर एक बात बताओ - जब आप बच्चों के लिए नहीं, बल्कि अपने लिए कर रहे हैं, तो क्या वो व्रत अभी भी 'मातृक बलिदान' है? ये तो थोड़ा ट्रांसफॉर्मेटिव है न?

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    Saurabh Jain

    नवंबर 7, 2025 AT 09:33

    मैं दिल्ली में रहता हूँ, लेकिन हर खरना मैं अपनी नानी के घर जाता हूँ। वहाँ मिट्टी के बर्तनों में खीर बनती है... और जब मैं उसे खाता हूँ, तो लगता है जैसे मैं अपने बचपन को फिर से छू रहा हूँ।

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    Nitin Srivastava

    नवंबर 9, 2025 AT 02:28

    मैं तो बस एक बार निर्जला व्रत करने वाला था... और फिर देखा - आठ घंटे बाद मेरा दिमाग बहुत शांत हो गया। अब तो मैं ये व्रत अपनी डेली रूटीन में शामिल कर लिया है। ये नहीं कि मैं धार्मिक हूँ... बल्कि मैं वैज्ञानिक हूँ।

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    Vivek Pujari

    नवंबर 9, 2025 AT 15:27

    अगर आप खरना के बाद नहीं रख रहे हैं तो आप अपने आत्मा को धोखा दे रहे हैं। ये सिर्फ एक त्योहार नहीं, ये एक आत्म-संस्कार है। अगर आप इसे नहीं करते, तो आपका जीवन बस एक बाजार की तरह है - भरा हुआ, लेकिन खाली।

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    shubham pawar

    नवंबर 10, 2025 AT 18:47

    मैंने इस व्रत को अपनाया था... और जब मैं नदी किनारे खड़ा था, तो एक बच्चे ने मुझे देखकर पूछा - 'अंकल, आप यहाँ क्यों खड़े हो?' मैंने कहा - 'मैं सूर्य को देख रहा हूँ।' वो बच्चा मुस्कुराया और बोला - 'अंकल, मैं भी देख रहा हूँ।' उसी पल मैंने समझ लिया - ये व्रत नहीं, ये एक अनुभव है।

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    Aravinda Arkaje

    नवंबर 11, 2025 AT 00:30

    अगर तुम्हें लगता है कि खरना सिर्फ भोजन न खाने की बात है, तो तुमने इसे नहीं समझा। ये तो तुम्हारे अंदर के बोझ को उतारने का दौर है। जब तुम भूखे हो, तो तुम्हारे विचार शुद्ध होते हैं - तुम्हारी चिंताएँ छूट जाती हैं। ये तो तुम्हारे लिए एक आंतरिक डिटॉक्स है।

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    suraj rangankar

    नवंबर 11, 2025 AT 09:23

    ये तो बहुत बढ़िया है कि आज भी लोग मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल कर रहे हैं! मैं तो घर पर बस एक बार ऐसा बर्तन लगाया था... और जब खीर बनी तो मेरी बहन ने कहा - 'ये तो बाबा की खीर जैसी लग रही है!' अब हर खरना मैं इसी बर्तन में बनाता हूँ।

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    Nadeem Ahmad

    नवंबर 12, 2025 AT 14:34

    मैं तो बस देखता रहता हूँ - लोग नदी किनारे खड़े होते हैं, चुपचाप आँखें बंद कर लेते हैं... और एक अजीब सी शांति हो जाती है। ये तो कोई त्योहार नहीं, ये तो एक अनुभव है जो शब्दों से परे है।

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    Suman Sourav Prasad

    नवंबर 13, 2025 AT 22:57

    मैंने अपनी बहन को इस व्रत के लिए प्रेरित किया... और जब उसने अपने बच्चे के लिए खरना रखा, तो उसकी आँखों में आँसू आ गए। वो बोली - 'मैं नहीं खा रही, लेकिन मेरा बेटा अब जी रहा है।' ये व्रत नहीं, ये एक आशीर्वाद है।

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    Ajay baindara

    नवंबर 15, 2025 AT 04:02

    ये सब बकवास है। आजकल के युवा इस व्रत को इंस्टाग्राम के लिए कर रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि कितने लोग खरना के दिन नदी किनारे खड़े होकर सेल्फी ले रहे हैं? ये धर्म नहीं, ये प्रदर्शन है।

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    bharat varu

    नवंबर 16, 2025 AT 18:25

    मैंने इस व्रत को अपनाया तभी जब मैं बहुत तनाव में था। जब मैंने एक दिन नहीं खाया, तो मेरा दिमाग शांत हो गया। अब मैं रोज सुबह खाली पेट चाय पीता हूँ - और उस एक घंटे में मैं अपने विचारों को साफ कर लेता हूँ। ये खरना का असली रहस्य है - शांति की खोज।

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    mohd Fidz09

    नवंबर 17, 2025 AT 16:09

    ये व्रत तो सिर्फ हिंदुओं का नहीं, ये तो पूरे भारत का है - जो भी इसे समझता है, वो अपने आप को भारतीय महसूस करता है। अगर आप इसे नहीं मनाते, तो आप अपनी जड़ों को भूल रहे हैं। ये तो हमारी सांस्कृतिक आत्मा का अंग है - और इसे बाहरी दुनिया को नहीं दिखाना, बल्कि अंदर जीना है।

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