सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को दी जमानत
आज का दिन आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं के लिए महत्वपूर्ण रहा, जब सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को शराब नीति मामले में जमानत देने का फैसला किया। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने उस समय लिया जब सिसोदिया लगभग 17 महीने जेल में बंद थे और उनके मामले की सुनवाई में देरी हो रही थी।
मामले की पृष्ठभूमि
मनीष सिसोदिया पर आरोप था कि उन्होंने दिल्ली की शराब नीति में भ्रष्टाचार करके सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाया और व्यक्तिगत लाभ के लिए जनता के प्रति अपने कर्तव्यों का उल्लंघन किया। सिसोदिया को सीबीआई ने 26 फरवरी और ईडी ने 9 मार्च को गिरफ्तार किया था।
संपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया में देरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सिसोदिया को बिना ट्रायल के 17 महीने जेल में रखना उनके त्वरित न्याय के अधिकार का उल्लंघन है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि इस मामले में ट्रायल के पूरे होने की कोई निकटतम संभावना नहीं है, क्योंकि इसमें 400 से अधिक गवाह और हजारों दस्तावेज शामिल हैं।
कोर्ट का निष्कर्ष
कोर्ट ने यह भी माना कि अधिकांश सबूत दस्तावेजी हैं और पहले से ही एकत्र किए जा चुके हैं, इसलिए सबूतों में छेड़छाड़ की संभावना नहीं है। कोर्ट ने यह भी देखा कि किसी भी गवाह को प्रभावित या धमकाने के अंदेशे को दूर करने के लिए शर्तें लगाई जा सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू द्वारा लगाए गए अनुरोध, जिसमें उन्होंने अरविंद केजरीवाल मामले की तरह शर्तें लगाने की मांग की थी, को भी खारिज कर दिया। राजू ने सिसोदिया को मुख्यमंत्री कार्यालय या दिल्ली सचिवालय जाने से रोकने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण
कोर्ट ने यह भी कहा कि एजेंसियों द्वारा मामला तेजी से निपटाने की उनकी तैयारी पर दिए गए बयान विरोधाभासी थे। उन्होंने पहले कहा था कि वे त्वरित ट्रायल के लिए तैयार हैं, लेकिन बाद में चार्जशीट दाखिल करने के लिए एक महीने का समय मांगा। बेंच ने कहा कि सिसोदिया को फिर से ट्रायल कोर्ट में भेजना उन्हें 'सांप और सीढ़ी' के खेल में डालने के समान होगा और नागरिक को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए खंभे से खंभे तक दौड़ाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
स्पीडी ट्रायल का अधिकार
सिसोदिया ने सीबीआई द्वारा भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम और ईडी द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में अलग-अलग जमानत याचिकाएं दायर की थीं। इसके पहले, दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी दूसरी जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि सिसोदिया का मामला सत्ता के दुरुपयोग और विश्वास के उल्लंघन का स्पष्ट उदाहरण है।
जमानत के बाद आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने राहत की सांस ली, क्योंकि यह उनके अनुयायियों के लिए उम्मीद की एक किरण जैसा है। कोर्ट के इस आदेश ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्याय के अधिकार को एक बार फिर स्थापित किया है। अब देखना होगा कि सिसोदिया और उनकी पार्टी इस निर्णय के बाद अपने राजनीतिक कदम कैसे उठाते हैं।