नवरात्रि दिवस 2: माँ ब्राह्मचरिणी की पूजा विधि, रंग, भोग और मंत्र

सित॰ 24, 2025
raja emani
नवरात्रि दिवस 2: माँ ब्राह्मचरिणी की पूजा विधि, रंग, भोग और मंत्र

माँ ब्राह्मचरिणी: स्वरूप और आध्यात्मिक अर्थ

नवरात्रि के दूसरे दिन का मुख्य केंद्र नवरात्रि में माँ ब्राह्मचरिणी है, जो नवदुर्गा के नौ रूपों में से दूसरी देवी हैं। ब्राह्मचरिणी का नाम दो शब्दों से बना है—‘ब्रह्म’ जिसका अर्थ है तप और ‘चरिणी’ जिसका अर्थ है वह जो चलती है। वह शुद्ध साधना, आत्म‑संयम और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक है। पौराणिक कथा के अनुसार, पार्वती ने शिव के साथ विवाह करने के लिए कठोर तपस्या की थी; इस तप की भावना को ही ब्राह्मचरिणी दर्शाती हैं।

दर्शन में माँ को सफेद वस्त्रों में साकार किया जाता है, एक हाथ में जपो (माला) और दूसरे में कमण्डल (पानी का पात्र) पकड़े हुए। नंगे पैर चलती हुई वह शांति और अडिग दृढ़ता का परिचय देती हैं। यही कारण है कि उनका रंग‑पहनावा और भोग भी शुद्धता के साथ जुड़ा रहता है।

पूजा विधि व अनुष्ठान

पूजा विधि व अनुष्ठान

नवरात्रि के दूसरे दिन का अनुष्ठान दो भागों में विभाजित किया जाता है—कालश स्थापना (घटस्थापना) और मुख्य पूजा। नीचे विस्तृत चरण दिए गये हैं, जिन्हें आप अपने घर में सरलता से अपना सकते हैं।

  • कालश स्थापना (घटस्थापना): सुबह स्नान के बाद, शुभ मुहूर्त चुनें। एक घन मिट्टी का छोटे आकार का पैन लें, उसमें तीन परतें मिट्टी डालें और सात धान्य (जौ, चावल आदि) डालें। अब उसमें गंगा जल, सुपारी, सिक्के, अक्षत और दुर्वा घास रखें। बाहरी भाग पर लाल कुंकुम से स्वस्तिक बनाएं। पाँच आम के पत्ते डालें, फिर नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर बांधें और इसे कालश के ऊपर रखें।
  • पूजन के लिये स्थल तैयार करना: साफ़ कपड़े से पूजा स्थान को पोंछें, आवश्यक सभी सामग्री (दीप, धूप, अगरबत्ती, पंचामृत, फल, फूल आदि) तैयार रखें।
  • मूर्ति या फोटो स्थापित करना: माँ ब्राह्मचरिणी की मूर्ति/फोटो को कालश के सामने रखें। सफ़ेद चूनर और लाल रंग की चादर से सजाएँ, साथ ही सफ़ेद गुलाब या कमल के फूल रखें।
  • आवरण एवं अभिषेक: माँ के माथे पर कुंकुम का तिलक लगाएँ, शिंगार के रूप में सफ़ेद वासे पत्ते और कमर में लाल किनार वाले वस्त्र रखें। अब गंगाजल छींटें और पंचामृत (दुग्ध, दही, घी, शहद, शक्कर) से अभिषेक करें।
  • भोग (प्रसाद) का चयन: इस दिन का शुभ रंग सफ़ेद है, इसलिए शुद्ध सफ़ेद फूल और शक्कर‑आधारित भोग जैसे गुड़ के लड्डू, खीर या शकर‑खीर तैयार करें। इस भोग का उद्देश्य शुद्धता और सुख की कामनाओं को संप्रेषित करना है।
  • जप और मंत्रोच्चारण: मुख्य मंत्र "ओम् देवी ब्राह्मचरिण्यै नमः" को बार-बार जपें। ध्यानी मंत्र: "वन्दे वंचित लभय चन्द्रर्ध्कृत शेखरम्, जप्मलाकामण्डलु धरा ब्राह्मचरिणीम् शुभम्" को मनन के साथ दोहराएँ।
  • दीप प्रज्वलन एवं अंधकार से प्रकाश: घी का दीप जलाएँ, धूप और अगरबत्ती की सुगंध से माहौल को शुद्ध करें। अंधकार को दूर करने के लिये अंखण्ड ज्योति को पूरे नवरात्रि के दौरान जलते रखें। यह अनन्त ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है।

पूजा समाप्त होने के बाद, प्रसाद को सभी घरवालों में वितरित करें। माँ की कृपा से मिलने वाला शुद्ध भोग स्वास्थ्य और आय दोनों के लिये शुभ माना जाता है।

इस दिन विशेष तौर पर कई लोग उपवास रखते हैं और ध्यान, श्‍वास अभ्यास और आत्म‑निरीक्षण के लिये समय निकालते हैं। ब्राह्मचरिणी की तपस्या की ऊर्जा को अपनाकर, जीवन में शांति, दृढ़ता और आत्म‑विश्वास को प्रकट किया जा सकता है।

नवदुर्गा के इस चरण में, जो परिवर्तन की यात्रा का प्रतीक है, हमें भी अपने अंदर छिपी अडिग शक्ति को पहचानना चाहिए। पूर्ण श्रद्धा और सच्ची निष्ठा के साथ की गई पूजा न केवल आध्यात्मिक उन्नति लाती है, बल्कि दैनिक जीवन में भी स्पष्टता और शक्ति प्रदान करती है।