70 घंटे कार्य सप्ताह – क्या है और क्यों चर्चा में है?

जब 70 घंटे कार्य सप्ताह, एक हफ्ते में कुल 70 घंटे काम करने की व्यवस्था. इसे कभी‑कभी बिजी वीक कहा जाता है तो तुरंत दो सवाल उठते हैं: क्या यह उत्पादकता को बढ़ाता है और क्या यह स्वास्थ्य को नुकसान नहीं पहुंचाता? यहाँ उत्पादकता, काम की दक्षता और परिणाम और स्वास्थ्य, शारीरिक व मानसिक कल्याण दोनों पहलुओं को समझना जरूरी है। साथ ही कार्य‑जीवन संतुलन, काम और निजी जीवन के बीच स्वस्थ तुलना भी इस चर्चा का अहम सवाल बन जाता है।

पहला संज्ञानात्मक लिंक यह है कि 70 घंटे कार्य सप्ताह सीधे समय‑प्रबंधन को प्रभावित करता है। जब आप रोज़ 10‑12 घंटे काम करते हैं, तो पारंपरिक 8‑घंटे की शेड्यूलिंग बिखर जाती है; इसलिए आपको डेडलाइन, मीटिंग और ब्रेक को फिर से व्यवस्थित करना पड़ता है। दूसरा, इस मॉडल में तनाव स्तर बढ़ता है, जिससे स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर हो सकता है—नींद की कमी, हृदय‑सम्बन्धी जोखिम और मानसिक थकान। तीसरा, उत्पादकता के मामले में कुछ संस्थाएँ दावा करती हैं कि लंबा कार्य समय लघु‑अवधि में उच्च आउटपुट देता है, लेकिन दीर्घकालिक डेटा अक्सर दिखाता है कि थकान के कारण वास्तविक आउटपुट घटता है। आख़िरकार, यदि काम के घंटे बढ़ते हैं तो परिवारिक जीवन, hobby और रीचार्जिंग टाइम पीछे छूटते हैं, जिससे कार्य‑जीवन संतुलन बिगड़ता है।

मुख्य कारण और वास्तविक प्रभाव

कई उद्योगों में 70 घंटे कार्य सप्ताह को अपनाने के पीछे दो बड़े कारण हैं—पहला, प्रतिस्पर्धी दबाव। वैश्विक बाज़ार में प्रतियोगियों से आगे रहने के लिए कंपनियाँ अक्सर समय‑सीमा को घटा देती हैं, और कर्मचारियों से अतिरिक्त घंटे काम करवाती हैं। दूसरा, प्रोजेक्ट‑ड्रिवेन मॉडल, जहाँ एक प्रॉजेक्ट को समय पर खत्म करने के लिए टीम को ओवरटाइम देना पड़ता है। इन दोनों कारणों से संगठनात्मक संस्कृति में “लाइफ़‑ऑफ़‑ऑफ़िस” का विचार घट जाता है। लेकिन वास्तविक आंकड़े बताते हैं कि जब कर्मचारी लगातार 70 घंटे से अधिक काम करते हैं, तो उत्पादकता की बर्नआउट रेट बढ़ती है, अपर्च्यूनिटी कॉस्ट (नए टैलेंट को आकर्षित करने की लागत) बढ़ती है, और रोग अनुपस्थिति (सिकनेस एब्सेंस) का प्रतिशत भी बढ़ता है।

इसी बीच, स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं कि तनाव हार्मोन (कोर्टिसोल) का स्तर लगातार ऊँचा रहता है, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। एक वर्ष में 70 घंटे कार्य सप्ताह वाले कर्मचारियों में हाइपरटेंशन, डायबिटीज और मानसिक डिप्रेशन की दर सामान्य कार्यकाल वाले लोगों से 2‑3 गुना अधिक पाई गई है। इसलिए, इस मॉडल को अपनाने से पहले रिकवरी स्ट्रैटेजी बनाना अनिवार्य है—जैसे कि नियमित छोटे ब्रेक, माइंडफ़ुलनेस प्रैक्टिस, और संतुलित डाइट।

फिर भी, कुछ कंपनियों ने इस चुनौती को मौका बना दिया है। उन्होंने लचीलापन (फ्लेक्सी‑टाइम) पेश किया, जहाँ कर्मचारी अपनी 70 घंटे को सप्ताह के अलग‑अलग दिनों में बांट सकते हैं—उदाहरण के लिए, चार दिन 12‑13 घंटे, पाँचवाँ दिन 10‑12 घंटे, और शनिवार‑रविवार को पूर्ण अवकाश। इस तरह से कार्य‑जीवन संतुलन में सुधार होता है, क्योंकि कर्मचारियों को एक लगातार दो‑तीन‑दिन का रिचार्ज टाइम मिलता है। साथ ही, कंपनियों ने परफॉर्मेंस‑बेस्ड प्रॉमोटिशन के बजाय वेल‑बिइंग‑बेस्ड बोनस को प्राथमिकता देना शुरू किया, जिससे कर्मचारियों को केवल घंटों की संख्या नहीं, बल्कि उनके स्वास्थ्य और खुशी को भी महत्व मिलता है।

संक्षेप में, 70 घंटे कार्य सप्ताह एक दोधारी तलवार है। एक तरफ यह तेज़ डिलीवरी, बड़े प्रोजेक्ट्स और अल्पकालिक लक्ष्य हासिल करने में मदद कर सकता है; दूसरी तरफ यह उत्पादकता के दीर्घकालिक गिरावट, स्वास्थ्य जोखिम और व्यक्तिगत जीवन की कमी जैसी कीमतें ले कर आता है। इसलिए, यदि आप या आपका संगठन इस मॉडल को अपनाने की सोच रहा है, तो एक ठोस संतुलन‑फ्रेमवर्क बनाना जरूरी है—जैसे कि स्वास्थ्य चेक‑अप, मानसिक सपोर्ट, और लचीली टाइम‑टेबलिंग। ऐसी रणनीतियों के बिना 70 घंटे कार्य सप्ताह सिर्फ एक “अधिक काम” का दिखावा बन कर रह जाएगा, न कि “अधिक मूल्य” की गारंटी।

अगले सेक्शन में आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न क्षेत्रों में 70 घंटे कार्य सप्ताह के अलग‑अलग केस स्टडीज़ ने अपने प्रोडक्टिविटी, हेल्थ मैट्रिक्स और कार्य‑जीवन संतुलन के आँकड़े बदलते दिखाए हैं। चाहे आप एक मैनेजर, फ्रेशर या फ्रीलांसर हों, यहाँ आपको वो व्यावहारिक टिप्स और डेटा मिलेंगे जो आपको इस चुनौती से निपटने में मदद करेंगे।

नव॰ 15, 2024
raja emani
क्यों नारायण मूर्ति ने 70 घंटे कार्य सप्ताह का समर्थन किया और कहा 'वर्क-लाइफ बैलेंस पर विश्वास नहीं'
क्यों नारायण मूर्ति ने 70 घंटे कार्य सप्ताह का समर्थन किया और कहा 'वर्क-लाइफ बैलेंस पर विश्वास नहीं'

इंफोसिस के सह-संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने 70 घंटे कार्य सप्ताह पर अपनी दृढ़ स्थिति से एक बार फिर से चर्चाओं को जन्म दिया है, जोर देते हुए कहा कि कड़ी मेहनत प्रगति की कुंजी है और वर्क-लाइफ बैलेंस का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने भारत में 1986 से कार्य सप्ताह को छह दिन से घटाकर पांच दिन करने पर अपनी निराशा व्यक्त की और कहा कि राष्ट्रीय प्रगति के लिए समर्पण और कठिन मेहनत आवश्यक है।

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