जब हम बात करते हैं गॉडेस महा गौरी, हिंदू धर्म में माँ पार्वती का सफ़ेद रूप, जो शुद्धता और शक्ति का प्रतीक है, Maha Gauri की, तो साथ ही मां पार्वती, शिव की पत्नी, ऊर्जा और प्रेम की देवी का उल्लेख करना ज़रूरी है। महा गौरी नवरात्रि के अष्टमी दिन की प्रमुख देवियों में से एक है, इसलिए नवरात्रि, नौ रातों का उत्सव, जहाँ प्रत्येक दिन एक देवी की आराधना होती है का समझना भी मददगार रहता है। इस संबंध से स्पष्ट होता है: महा गौरी पूजा गॉडेस महा गौरी के शुद्ध स्वरूप को अपनाती है, नवरात्रि व्रत में इसका योगदान प्रमुख है, और माँ पार्वती की शक्ति इसे आकार देती है।
महा गौरी का मूल अर्थ है ‘अति‑शुद्ध’। वह चार हाथों में विभिन्न वस्तुएँ लेकर खड़ी होती है – ध्वजा, जल, पर्ण और मोती। इन प्रतीकों में से ध्वजा विजय का बोध कराती है, जल शुद्धता की, पर्ण संतोष की और मोती समृद्धि की। इन गुणों को अपनाने के लिए व्रति में कई अनुष्ठान होते हैं जैसे कि ब्रह्मा मुहूर्त में स्नान, सफेद वस्त्र धारण करना और शुद्ध शाकाहारी भोजन करना। यह सब शुद्धता का प्रत्यक्ष अनुभव बनाता है, जिससे मन और शरीर दोनों हल्के होते हैं।
व्रत की शुरुआत सातवां दिवस – अष्टमी से पहले, जब घर में सफ़ेद चांदनी से सजावट की जाती है। इस समय शुद्ध भोजन, शाकाहारी, बिना लहसुन-जीरा के खाना ग्रहण किया जाता है। फिर शाम को माता महा गौरी की कथा सुनना अनिवार्य है; यह कथा अक्सर शांति और आत्मसंवेदन पर केंद्रित होती है। कथा के बाद, जल से शुद्धि के लिए ‘गौरी अथर्ववेद’ की मंत्रत्रुटि का उच्चारण किया जाता है। यह मंत्रत्रुटि शारीरिक ऊर्जा को संतुलित करती है और मन में शांती लाती है। अंत में, अष्टमी की रात को दीप जलाकर प्रतिमूर्ति या तस्वीर के सामने प्राणायाम और ध्यान किया जाता है।
इन सभी चरणों में एक चक्रीय संबंध होता है: महा गौरी की कथा उत्प्रेरक है, नवरात्रि का माहौल सहायक है, और माँ पार्वती का आध्यात्मिक प्रभाव पुनरुत्पादक। इस त्रिकोणीय संबंध से व्रती को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है, जो उसके जीवन को साकार करती है। साथ ही, इस व्रत में भाग लेने वाले लोग अक्सर अपने घर में सफ़ेद फूलों की माला बनाकर उन्हें पूजा स्थल पर रखते हैं; यह साधारण कार्य शुद्धता की भावना को मजबूत करता है।
महा गौरी की पूजा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि चिकित्सीय भी है। कई आयुर्वेदिक चिकित्सक मानते हैं कि सफ़ेद रंग और शाकाहारी आहार शरीर में “वात” को संतुलित करते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसलिए, इस व्रत को अपनाने वाले लोग अक्सर अपने स्वास्थ्य में सुधार देखते हैं। अगर आप सिर्फ व्रत नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जीवनशैली बदलना चाहते हैं, तो रोज़ाना सुबह जल्दी उठकर ‘व्यायाम + प्राणायाम + महा गौरी मंत्र’ का नियम अपनाएँ। यह संयोजन ऊर्जा को जाग्रत करता है और दिन भर संतुलित रखता है।
साथ ही, महा गौरी के उत्सव में कई सामाजिक पहलें भी जुड़ी होती हैं। कई गाँव में इस व्रत के दौरान ‘शुद्धता अभियान’ चलाया जाता है जहाँ लोग मिलकर जल स्रोतों की सफ़ाई करते हैं। इस तरह की सामुदायिक गतिविधियों से सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं और पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ती है। इस पहल को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम माना जा सकता है, जो आज के समय में बहुत महत्त्वपूर्ण है।
अंत में, यदि आप महा गौरी की पूजा, कथा और व्रत को सही ढंग से अपनाना चाहते हैं, तो ऊपर बताए गये चरणों को क्रमबद्ध रूप में अपनाएँ। पहली बार करने वालों को छोटे‑छोटे कदम उठाने चाहिए – जैसे कि सफ़ेद वस्त्र पहनना और शुद्ध जल पीना। धीरे‑धीरे आप सम्पूर्ण व्रत और पूजा की प्रक्रिया को अपना सकते हैं। यह न केवल आपको आध्यात्मिक शांति देगा, बल्कि आपके दैनिक जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा। नीचे आप विभिन्न विषयों से जुड़े लेख पाएँगे, जहाँ महा गौरी के विभिन्न पहलुओं – कथा, व्रत, औषधीय लाभ और सामाजिक प्रभाव – पर गहराई से चर्चा की गई है। पढ़ते रहें और अपने जीवन में शुद्धता का प्रकाश जलाएँ।
Navratri के आठवें दिन Maha Ashtami 30 सितंबर 2025 को पड़ रहा है। इस दिन देवी महा गौरी की पूजा विशेष महत्व रखती है। दो प्रमुख Kanya Puja मुहूर्त 5‑6 बजे और 10:40‑12:10 बजे निर्धारित हैं। शंकु‑पक्ष की तिथि 29 सितंबर शाम 4:31 बजे से शुरू होकर 30 सितंबर शाम 6:06 बजे तक चलती है।