जब हम गुरु पूर्णिमा, हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला एक पावन दिवस है, जहाँ शिष्यों द्वारा अपने आध्यात्मिक गुरुओं का आभार प्रकट किया जाता है, गुरुपूर्व की बात करते हैं, तो यह सिर्फ एक तिथि नहीं, बल्कि ज्ञान, शिष्य‑गुरु बंधन और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक है। इस दिन शुकरिया के बाद सूर्य को अर्धरात्रि में उगते देख, पुराने ग्रंथों में वर्णित परम्पराओं का पालन किया जाता है। यहाँ मुख्य प्रश्न यह बनता है – गुरु कौन होते हैं, और उनका सम्मान क्यों आवश्यक है?
गुरु को परिभाषित किया जा सकता है आध्यात्मिक गुरु, वह व्यक्ति जो जीवन के सच्चे मार्ग, आचार‑संहिता और आत्मनिरीक्षण की दिशा दिखाता है के रूप में, चाहे वह वेदों का पंडित हो, योगी, या कोई सामाजिक शिक्षक। गुरु पूर्णिमा में यह स्पष्ट किया जाता है कि शिक्षक‑शिष्य रिश्ता केवल ज्ञान का संचार नहीं, बल्कि आत्मा को शुद्ध करने का साधन है। इस कारण हर साल कई आश्रम, मठ और घरों में गुरुओं को पुष्पमाला, धूप और प्रसाद अर्पित किया जाता है। यही कारण है कि इस त्यौहार में वेद, हिंदू धर्म के चार प्रमुख शास्त्र जो आध्यात्मिक ज्ञान और जीवन के नियम संकलित करते हैं का विशेष स्थान होता है। वेदों की पढ़ाई, मंत्रों का जप और शास्त्रों के प्रति श्रद्धा इस दिन की प्रमुख गतिविधियों में गिनी जाती है।
परम्परागत रूप से गुरु पूर्णिमा के दिन ध्यान, मन को एकाग्र कर आत्मा की शांति प्राप्त करने की प्राचीन प्रथा किया जाता है। यह न केवल व्यक्तिगत शांति देता है, बल्कि गुरु की शिक्षाओं को आत्मसात करने की प्रक्रिया को तेज करता है। कई मंदिरों में 'विद्यादान' समारोह आयोजित होते हैं, जहाँ शिष्यों को ज्ञान के उपहार के रूप में पतस, पेंसिल या पुस्तकें दी जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में गुरुओं को निशुल्क भोजन देने की परम्परा भी है, जिससे समाज में सेवा‑भावना और परोपकार की भावना को बढ़ावा मिलता है।
आज के तेज़-तर्रार माहौल में भी गुरु पूर्णिमा का संग्लन वैध है। कई कंपनियों ने इस दिन को ‘Mentor Day’ के रूप में अपनाया है, जहाँ वरिष्ठ कर्मचारी अपने जूनियर्स को मार्गदर्शन देते हैं। यह सामाजिक रूप से विस्तृत अर्थ देता है – गुरु केवल धर्मिक गुरु नहीं, बल्कि किसी भी क्षेत्र के मार्गदर्शक होते हैं। इस प्रकार, इस त्यौहार की रीति‑रिवाज हमें आज भी प्रेरित करती हैं कि हम अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में सही मार्गदर्शक खोजें और उनका सम्मान करें।
भौगोलिक विविधता के बावजूद, पूरे भारत में गुरु पूर्णिमा के समारोह समान हैं – घण्टे बजाते हैं, पुजारी मंत्रोच्चारण करते हैं, और शिष्यों द्वारा ‘श्री गुरु मंत्र’ का जाप किया जाता है। उत्तर भारत में अक्सर इस दिन पर ‘गुरुदेव प्रसाद’ के रूप में चावल, जौ और मिठाइयाँ बांटी जाती हैं, जबकि दक्षिण भारत में ‘गुरु दान’ के अंतर्गत पवित्र पानी और नारियल अर्पित होते हैं। इस विविधता से स्पष्ट होता है कि एक ही आध्यात्मिक अवधारणा विभिन्न सांस्कृतिक अभिव्यक्तियों में जीवित रहती है।
यदि आप इस वर्ष गुरु पूर्णिमा को विशेष बनाना चाहते हैं, तो कुछ सरल कदम अपनाएँ – सुबह उठकर अपने जीवन में मार्गदर्शन देने वाले किसी भी व्यक्ति को लिखित धन्यवाद पत्र दें, या घर में एक छोटा पूजा स्थल बना कर वेदों के श्लोक जपें। इससे न केवल आपके आध्यात्मिक संबंध दृढ़ होते हैं, बल्कि मन की शांति भी मिलती है। अंत में, यह याद रखें कि गुरु पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि ज्ञान, सेवा और कृतज्ञता के सतत चक्र का प्रतिनिधित्व करता है। अब नीचे आप देखेंगे कि इस पवित्र दिन से जुड़ी विभिन्न खबरें, रिवाज़ें और सामाजिक प्रभाव कैसे हमारे दैनिक जीवन में प्रभाव डालते हैं।
गुरु पूर्णिमा 2024 का पर्व 21 जुलाई को मनाया जाएगा, जो आध्यात्मिक शिक्षकों के प्रति सम्मान प्रकट करने का दिन है। इस दिन का महत्व वेद व्यास के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों और महाभारत का संकलन किया था। इस मौके पर भक्त विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान करते हैं और अपने गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।