ट्रम्प के 100% टैरिफ घोषणा से Nifty Pharma में 2% गिरावट, शेयरों पर दबाव

सित॰ 27, 2025
raja emani
ट्रम्प के 100% टैरिफ घोषणा से Nifty Pharma में 2% गिरावट, शेयरों पर दबाव

ट्रम्प की टैरिफ घोषणा ने फ़ार्मा शेयरों को क्यों धकेला?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 1 अक्टूबर, 2025 से शुरू होने वाली नई नीति की घोषणा की, जिसमें ब्रांडेड फार्मास्युटिकल आयात पर 100% टैरिफ लगेगा। भारत से यूएस को एक्सपोर्ट होने वाले दवाओं की लागत अचानक दुगनी हो जाएगी, जिससे अमेरिकी दवा कंपनियों को नुकसान होगा और विशेष रूप से स्वदेशी फार्मा कंपनियों को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इस समाचार के बाद निफ्टी फ़ार्मा इंडेक्स ने एक ही सत्र में 2% से अधिक गिरावट दर्ज की।

सप्ताह के शुरुआत में इंडेक्स में 2.3% की गिरावट देखी गई, जिससे बाजार में बेचैन माहौल बना। प्रमुख दवा कंपनियों के शेयरों में गिरावट के प्रमुख कारण टैरिफ की तुरंत प्रभावी होने की संभावना और संभावित निर्यात हानि थे।

मुख्य कंपनियों पर असर और बाजार के संकेत

मुख्य कंपनियों पर असर और बाजार के संकेत

जैसे ही टैरिफ की खबर फ़ायनेंशियल टाइम्स और ब्लूमबर्ग पर आई, नीचे दी गई कंपनियों के शेयरों में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज हुई:

  • Sun Pharma – 1.4% नीचे
  • Biocon – 2.1% गिरा
  • Gland Pharma – 3.5% कमी
  • Aurobindo Pharma – 2.8% गिरावट
  • Dr. Reddy's Laboratories – 2.0% नीचे

इन कंपनियों की गिरावट का मुख्य कारण आयातित कच्चे माल पर बढ़ती लागत और संभावित यूएस बाजार से कम आय था। कई विश्लेषकों ने बताया कि भारतीय फ़ार्मा सेक्टर अपने कॉ generic दवाओं की निर्यात क्षमता के कारण अभी भी मजबूत है, लेकिन ब्रांडेड सेक्टर को इस टैरिफ से गहरी झटका लग सकता है।

बाजार विशेषज्ञों ने बताया कि टैरिफ के बाद निवेशकों को वैकल्पिक बाजारों, जैसे यूरोपीय संघ और एशिया‑पैसिफिक में विस्तार करने की जरूरत पड़ेगी। कुछ फंड मैनेजर्स ने अपने पोर्टफोलियो में रक्षात्मक स्टॉक्स को बढ़ाने का इरादा जताया, जबकि अन्य ने इन कंपनियों की दीर्घकालिक रेसिलिएन्सी पर भरोसा जताया।

इतिहास में भी ऐसे टैरिफ कदमों ने कभी‑कभी बाजार में अस्थायी उथल‑पुथल मचायी, परन्तु कंपनियों ने नई रणनीतियों के साथ अनुकूलन किया। उदाहरण के तौर पर, 2018 में चीन की एंटीडंपिंग ड्यूटी ने भारतीय एक्सपोर्टर्स को नई मार्केट्स खोजने के लिए प्रेरित किया। इसी तरह, फिलहाल भारतीय फ़ार्मा कंपनियों को यूरोपीय और एशियाई बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत करने की जरूरत दिख रही है।