जब आपराधिक विधि की बात आती है, तो जमानत, जमानत वह कानूनी व्यवस्था है जिससे गिरफ्तार व्यक्ति को कोर्ट की अनुमति से कुछ शर्तों के साथ अस्थायी रिहा किया जाता है, अक्सर इसे बैन कहा जाता है, यह प्रक्रिया मूल रूप से न्यायालय द्वारा नियंत्रित होती है। अधीनस्थ न्यायालय, वह अदालत जो जमानत के आदेश देता है और शर्तों का निरीक्षण करता है जमानत को लागू करने में प्रमुख भूमिका निभाता है। यह सिद्धांत आपराधिक न्याय प्रणाली के भीतर जुड़ा हुआ है, जहाँ पुलिस, वकील और जज मिलकर यह तय करते हैं कि आरोपी को कब और कैसे अस्थायी रूप से घर लौटने की अनुमति मिलनी चाहिए।
जमानत के दो बड़े वर्ग होते हैं: प्रत्याशा जमानत, ऐसी जमानत जो गिरफ्तारी से पहले मिलती है, जिससे आरोपी को कारावास से बचाया जा सके और सामान्य जमानत जो गिरफ्तारी के बाद कोर्ट द्वारा दी जाती है। प्रत्याशा जमानत अक्सर तब दी जाती है जब धारा के तहत अपराध गंभीर नहीं माना जाता या आरोपी के पास सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। आम जमानत में शर्तें जैसे कि पुलिस रिपोर्ट जमा करना, पासपोर्ट जमा करना, या कोई निश्चित राशि जमा करना शामिल हो सकता है; इसे अक्सर राशि‑जमानत कहा जाता है। देश के विभिन्न राज्यों में जमानत नियम अलग‑अलग हो सकते हैं, पर मूल तौर पर जमानत निम्नलिखित गुणों से पहचानी जाती है:
कई लोग जमानत के बारे में यही पूछते हैं: "जमानत कब मिलती है?" "क्या जमानत के लिए कोई निश्चित राशि होती है?" "जमानत के बाद क्या प्रतिबंध होते हैं?" इन प्रश्नों के उत्तर हमारी नीचे दी गई लेख सूची में मिलेंगे। यहाँ हम जमानत के विभिन्न पहलुओं—जैसे कि अदालत की भूमिका, पुलिस की प्रक्रिया, और विभिन्न प्रकार की जमानत—को संक्षेप में पेश कर रहे हैं, ताकि आप स्थिति को सही ढंग से समझ सकें। अब आप इस टैग पेज पर उपलब्ध लेखों में जमानत की प्रमुख खबरें, केस स्टडी और अद्यतन कानूनी बदलाव देख पाएँगे, जो आपके कानूनी ज्ञान को अपडेट करने में मदद करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने आज दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को शराब नीति मामले में जमानत दी। कोर्ट ने देरी को ध्यान में रखते हुए उनके जमानत की अर्जी मंजूर की और कहा कि सिसोदिया को अपनी आज़ादी के लिए अनिश्चित समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता है।