जब हम पूजा विधि, भक्ति के अनुसार किए जाने वाले अनुष्ठान, सामग्री और समय का व्यवस्थित समुच्चय है. इसे कभी‑कभी आरती प्रक्रिया भी कहा जाता है। पूजा विधि का उद्देश्य आध्यात्मिक शांति और इच्छाओं की पूर्ति है, और यह अक्सर मुहूर्त, शुभ समय या क्षण जो ग्रहों की स्थितियों पर आधारित होता है के चयन पर निर्भर करता है।
एक दूसरी अहम इकाई व्रत, धार्मिक प्रतिबन्धित आहार या व्यवहार जो विशेष देवता की पूजा के साथ किया जाता है है। व्रत के दौरान किए गए पूजन की प्रभावशीलता पूजा विधि में बताए गए अनुक्रम और सामग्री से बढ़ती है। उदाहरण के तौर पर, गूंजे हुए दीपकों की ज्वाला, या साबुत दाल को तोड़े बिना चढ़ाने की प्रक्रिया, दोनों ही व्रत के साथ जुड़ी हुई हैं।
तीसरा प्रमुख संबंध धर्म, समाज के नैतिक-धार्मिक सिद्धांत जो व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन को निर्देशित करते हैं से जुड़ा है। धर्म के अंतर्गत दी गई आज़ीवन रीतियों में पूजा विधि का स्थान विशेष है, क्योंकि बहुत सारा पर्व, जैसे गणेश चतुर्थी, दिवाली या करवा चौथ, विशेष धर्मिक आदेशों के अनुसार ही होता है। इस प्रकार, धर्मिक संदर्भ पूजा विधि को दिशा देता है और उसके नियमों को सुदृढ़ बनाता है।
इन सभी तत्वों—पूजा विधि, मुहूर्त, व्रत और धर्म—के बीच कई सेमांटिक कनेक्शन बनते हैं। पहला ट्रिपल: "पूजा विधि शामिल करती है शुभ मुहूर्त"। दूसरा: "व्रत सुदृढ़ बनाता है पूजा की आध्यात्मिक शक्ति"। तीसरा: "धर्म निर्धारित करता है पूजा के स्वरूप और समय"। इन कनेक्शनों को समझना पाठकों को अधिक सटीक और प्रभावी अनुष्ठान करने में मदद करता है।
भक्तों के लिए सही सामग्री का चयन उतना ही जरूरी है जितना समय का। आम तौर पर घी, फूल, धूप, कपूर, और सूपत्र जैसी वस्तुएँ प्रयुक्त होती हैं। इनमें से प्रत्येक का एक अर्थ है—घी शुद्धि का प्रतीक, फूल सृष्टि की भव्यता, धूप आध्यात्मिक प्रकाश। जब इनको अनुशासन के साथ व्यवस्थित किया जाता है, तो पूजा की शक्ति बढ़ती है। साथ ही, ध्यान और जप को साथ रखना चाहिए, क्योंकि शब्दों की गूंज ऊर्जा को स्थायित्व देती है।
प्रत्येक तीर्थस्थल या घर में अलग‑अलग रीति‑रिवाज़ होते हैं, पर मूल सिद्धांत समान रहता है: शुद्ध मन, स्वच्छ स्थान, और समय का सही चयन। यदि आप पहली बार पूजा कर रहे हैं, तो सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने नजदीकी मंदिर या अनुभवी मार्गदर्शक की सलाह लें। फिर एक बार मूल सिद्धान्त समझ में आ जाएँ, तो विभिन्न पर्वों की विशिष्ट विधियों को आसानी से अपनाया जा सकता है।
सभी लेखों में आप देखेंगे कि कैसे विभिन्न त्यौहारों—जैसे गणेश चतुर्थी के पार्वती के मैल से जन्म, या दिवाली के शुभ मुहूर्त—में विशेष पूजा विधियाँ बताई गई हैं। इन पृष्ठों को पढ़कर आप अपने जीवन में सही समय, सही सामग्री और सही रीतियों को जोड़ सकेंगे। अब नीचे दी गई सूची में आप अपने रुचि के अनुसार अध्याय चुन सकते हैं, चाहे वह वैदिक मंत्र हों, या आधुनिक व्याख्याएँ।
नवरात्रि के दूसरे दिन माँ ब्राह्मचरिणी की पूजा का महत्व, रंग, भोग, मंत्र और विस्तृत अनुष्ठान बताया गया है। सफेद रंग और शक्कर‑आधारित प्रसाद की पसंद, कालश स्थापना से लेकर अखंड ज्योति तक की प्रक्रिया विस्तार से समझी गई है। यह लेख घर‑घर में आसानी से अपनाने योग्य पूजा विधि प्रस्तुत करता है।