जब हम शूटिंग प्रतियोगिता, एक ऐसा खेल जहाँ निशाने पर सटीकता और तेज़ी दोनों की परीक्षा होती है, भी अक्सर शूटिंग इवेंट के नाम से भी जाना जाता है की बात करते हैं, तो सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि इसमें किस‑किस चीज़ की जरूरत पड़ती है। मूल रूप से दो मुख्य प्रकार के हथियार इस्तेमाल होते हैं—पिस्तौल, छोटी कैलिबर वाली व्यक्तिगत हथियार, जो 10 मीटर या 25 मीटर के मानक दूरी पर फायर किए जाते हैं और राइफल, लंबी बैरेल वाली, अक्सर 50 मीटर या 300 मीटर दूरी के लिये उपयोगी, सटीकता में उच्च मानक वाले हथियार। ये दोनों उपकरण अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार प्रमाणित होने चाहिए, इसलिए ओलंपिक, विश्व स्तर पर शुटिंग को मान्यता देने वाला प्रमुख मंच, नियमों और क्वालिफ़ाइंग स्कोर को नियंत्रित करता है के नियम भी इनके डिजाइन में प्रतिबिंबित होते हैं।
एक शुटिंग प्रतियोगिता तीन बिंदुओं से परिभाषित होती है: नियम, रैंकिंग प्रणाली और इवेंट की श्रेणी। नियमों में लक्ष्य का आकार, दूरी, समय सीमा और उपयोग किए जाने वाले कार्ट्रिज की क्षमताएँ निश्चित रहती हैं। रैंकिंग प्रणाली में प्रत्येक शॉट का स्कोर 0 से 10.9 तक हो सकता है, और कुल स्कोर के आधार पर पदक तय होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में राष्ट्रीय शुटिंग संघ, भारतीय शुटिंग संघ (ISSF के सदस्य), जो चयन प्रक्रिया, अनुशासन और पदोन्नति को संचालित करता है प्रमुख भूमिका निभाता है। यह संघ विभिन्न वर्गों—पुरुष, महिला, मिश्रित टीम, युवा—के लिये अलग‑अलग कप्लेट बनाता है, जिससे हर स्तर के खिलाड़ी अपनी क्षमताओं को दिखा सकें।
इवेंट की श्रेणी को समझना भी उतना ही जरूरी है। कुछ प्रतियोगिताएं केवल पिस्तौल पर केन्द्रित होती हैं, जैसे 10 मीटर एयर पिस्टॉल, जबकि अन्य राइफल आधारित, जैसे 50 मीटर राइफल (प्रेसिशन) या 300 मीटर राइफल (ट्रायल)। ओलंपिक में इन सभी श्रेणियों की अलग‑अलग जगह है, और हर चार साल में एक नया क्वालिफ़ाइंग टूर्नामेंट आयोजित होता है जिससे विश्व स्तर के शुटर्स को मौका मिलता है। इसके अलावा, एशिया कप, विश्व चैंपियनशिप और विभिन्न राष्ट्रीय लीग्स भी इस खेल के विकास में योगदान देते हैं।
जब आप किसी शुटिंग प्रतियोगिता का लाइव या ऑनलाइन कवरेज देखते हैं, तो अक्सर देखेंगे कि शुटर्स को उनका परफेक्ट स्कोर मिलने के बाद “फ़्लाइट” कहा जाता है—ये शब्द मूल रूप से एयर रिफ़्लेक्शन से आया है, लेकिन आज यह पूरी सटीकता को दर्शाता है। इस शब्दावली में रीसाइट (नए सिरे से लक्ष्य पर जाना) और ट्रिगर टाइमिंग (ट्रिगर दबाने का सही क्षण) भी शामिल हैं, जो हर शुटर को लगातार अभ्यास करके मास्टर करना पड़ता है।
अब आप जानते हैं कि शुटिंग प्रतियोगिता में क्या क्या घटक होते हैं, कौन‑से उपकरण इस्तेमाल होते हैं, और अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर इसको कैसे मान्यता मिली है। नीचे आप उन लेखों और समाचारों की सूची पाएँगे जहाँ recent इवेंट्स, क्वालिफ़ाइंग प्रक्रिया, और उपकरणों के अपडेट की विस्तृत जानकारी दी गई है। ये पोस्ट आपके खेल की समझ को गहरा करेंगे और अगली प्रतियोगिता में कौन‑से पहलुओं पर ध्यान देना चाहिए, इसपर स्पष्ट दिशा देंगे।
तुरुकी के 51 साल के निशानेबाज़ यूसुफ डिकीच ने पेरिस 2024 ओलंपिक्स में अनोखी शैली अपनाकर सबको चौंका दिया। पांचवीं बार ओलंपिक्स में भाग लेते हुए, डिकीच और उनकी टीम मेट सेव्वल इलायडा तरहान ने तुर्की के लिये 10 मीटर एयर पिस्टल मिक्स्ड टीम प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल जीता। साधारण चश्मे और कानों में किसी तरह की सुरक्षा के बिना, डिकीच की स्थिरता और एडिंग प्रणाली ने उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।